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ग़फ़लतों की दुनिया

~ साहित्य सर्जना

ग़फ़लतों की दुनिया

Category Archives: क़त्आ

देखिए लेके कहाँ जाती है उल्फ़त मेरी

21 मंगलवार नवम्बर 2017

Posted by चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ in क़त्आ

≈ टिप्पणी करे

सच कहूँ जाऊँगा हर हाल नहीं छोड़ ये दर
पर दिखे इक भी तो जिसको हो ज़ुरूरत मेरी
मैं न घर का ही रहा और न ही घाट का अब
देखिए लेके कहाँ जाती है उल्फ़त मेरी

-‘ग़ाफ़िल’

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इतना भी ग़ुरूर इश्क़ में अच्छा नहीं होता

14 मंगलवार नवम्बर 2017

Posted by चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ in क़त्आ

≈ टिप्पणी करे

होती न ख़लिश जी में तेरे तीरे नज़र की
पक्का है मेरी जान मैं ज़िन्दा नहीं होता
फिर भी न बहुत पाल भरम हुस्न के बाबत
इतना भी ग़ुरूर इश्क़ में अच्छा नहीं होता

-‘ग़ाफ़िल’

(चित्र गूगल से साभार)
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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

मेरी पैदाइश बस्ती ज़िले के एक मध्यवर्गीय जमींदार परिवार में हुई। लेकिन मेरे पैदा होने तक जमींदारी मटियामेट हो चुकी थी। बस ऐंठन बाकी थी। मेरे वालिद ने उच्च शिक्षा हेतु मेरा दाख़िला इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कराया पर पढ़ाई के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया। जैसे तैसे शिक्षा पूरी की। इकलौती औलाद होने के नाते मुझे घर को संभालने वापस आना पड़ा। पढ़ाई लिखाई का शौक़ था और गाँवं के ही क़रीब ही महाविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी मिल गयी तो यह शौक़ भी पूरा हो रहा है। मीर तथा ग़ालिब की ग़ज़लें पढ़ पढ़कर हुई तुकबन्दी की शुरुआत ने ग़ाफ़िल बना दिया। अब बतौर ग़ाफ़िल आपके सामने हूँ इस तमन्ना के साथ कि- ग़फ़लत में ही यूँ ज़िन्दगी हंसते और गाते, यारों से गप लड़ाते गुज़र जाय तो अच्छा।

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