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ग़फ़लतों की दुनिया

~ साहित्य सर्जना

ग़फ़लतों की दुनिया

Category Archives: गीत

लोग इतना क़रीब रहकर भी दूरियां कैसे बना लेते हैं

01 गुरूवार जनवरी 2015

Posted by चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ in गीत

≈ 4 टिप्पणियाँ

लोग इतना क़रीब रहकर भी,
दूरियां कैसे बना लेते हैं।
बात करना तो बड़ी बात हुई,
देखकर आँख चुरा लेते हैं।

फ़ासिला तीन और पाँच का मिटे कैसे,
चार दीवार खड़ी बीच से हटे कैसे,
मेरी नाकामयाब कोशिश पे,
लोग हँसते हैं, मज़ा लेते हैं।

मैं वफ़ा करता रहा उनकी बेवफ़ाई से,
वो जफ़ा करते रहे हैं मेरी वफ़ाई से,
नग़्में ये सब वफ़ा-जफ़ाई के,
किसको कब कैसा सिला देते हैं।

उम्र ‘ग़ाफ़िल’ तेरी उनको ही मनाने में गई,
उनकी भी एक उमर तुझको सताने में गई,
छोड़ ये फ़ालतू क़वायद है,
और अफसाना सजा लेते हैं।।

-‘ग़ाफ़िल’

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चलो आज फिर वह तराना बनाएं

20 रविवार अप्रैल 2014

Posted by चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ in गीत

≈ 5 टिप्पणियाँ

चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
वो गुज़रा हुआ इक ज़माना बनाएँ
वो झुरमुट की छाँव वो दरिया का पानी
बहकती हुई दो जवाँ ज़िन्दगानी
ज़मीं आसमाँ का अचानक वो मिलना
वो मिलकर सँभलना सँभलकर फिसलना
जो गाया कभी था वो गाना बनाएँ
चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
वो पच्छिम के बादल का उठना अचानक
ज़मीं का सिहरना सिमटना अचानक
अचानक ही बादल का जमकर बरसना
नये अनुभवों से ज़मीं का सरसना
मधुरस्मरण का ख़जाना बनाएँ
चलो आज फिर वह तराना बनाएँ
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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

मेरी पैदाइश बस्ती ज़िले के एक मध्यवर्गीय जमींदार परिवार में हुई। लेकिन मेरे पैदा होने तक जमींदारी मटियामेट हो चुकी थी। बस ऐंठन बाकी थी। मेरे वालिद ने उच्च शिक्षा हेतु मेरा दाख़िला इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कराया पर पढ़ाई के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया। जैसे तैसे शिक्षा पूरी की। इकलौती औलाद होने के नाते मुझे घर को संभालने वापस आना पड़ा। पढ़ाई लिखाई का शौक़ था और गाँवं के ही क़रीब ही महाविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी मिल गयी तो यह शौक़ भी पूरा हो रहा है। मीर तथा ग़ालिब की ग़ज़लें पढ़ पढ़कर हुई तुकबन्दी की शुरुआत ने ग़ाफ़िल बना दिया। अब बतौर ग़ाफ़िल आपके सामने हूँ इस तमन्ना के साथ कि- ग़फ़लत में ही यूँ ज़िन्दगी हंसते और गाते, यारों से गप लड़ाते गुज़र जाय तो अच्छा।

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